परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः !
अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् !!

कोई अपरिचित व्यक्ति भी अगर आपकी मदद करे तो उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दे और अगर परिवार का कोई अपना सदस्य भी आपको नुकसान पहुंचाए तो उसे महत्व देना बंद कर दे. ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमारी हो जाए, तो वह हमें तकलीफ पहुंचाती है, जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है|

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